वशिष्ठ कुन्ड
स्कन्द पुराण के प्रभास खन्ड के अर्वुदांचल महातम्य के अनुसार वशिष्ठ ऋषी आबू के पास तपस्या करते थे यहां एक विशाल गढ़ा था। संयोग से कामधेनू उस में गिर गई, वशिष्ठ सरस्वती नदी के पास गये, सरस्वती ने गढे को पानी से भर दिया और कामधेनू तैरती हुई बाहर आ गई। भविष्य में ऐसी दुर्घटना फिर न हो इसके लिए विशष्ठ ने पर्वतराज हिमालय से इस गढे को सदैव के लिये भर देने की प्रार्थना की। हिमालय ने अपने छोटे पुत्र नन्दिवर्धन को यह कार्य करने की आज्ञा दी, नन्दि-वर्धन एक पैर से लाचार था, इसलिये वह अपने पिता की आज्ञा पूरी करने के लिए अर्बुद नामक नाग की पीठ पर बैठकर इधर आया और गढे में प्रवेश कर उसे पुरा भर दिया, तभी से अर्बुद या आबू पर्वत यहां स्थित है। कवि चन्दवरदाई के अनुसार राजपूतो के प्रतिहार, परमार, चौलुक्य और चौहान वंशों की उत्पति वशिष्ठ ऋषि के आबू पर्वत पर स्थित कुन्ड से हुई। आबू से लगभग 10 कि.मी. दूर गोमुख हैं, यहां स्थित वशिष्ठ ऋषि के आश्रम में एक मन्दिर बना हुवा हैं, जिसमें मर्यादा पुरूषोतम राम लक्ष्मण तथा विशष्ठ ऋषि की प्रतिमाएं हैं।