श्री सतीमाता मामडाली
मामडाली गांव बोरावड़ के पास तहसील मकराना में है। इस गांव के पारीकों में एक ही परिवार के पाण्डिया निवास करते हैं। रावों की बही अनुसार करीब 450 वर्ष पहले इसी गांव के पाण्डिया परिवार के किसी सदस्य की बारात गई थी। ससुराल में ही उसकी अचानक मौत हो गई उसकी मंगेतर पत्नी ने अपने मृत पति के साथ ही सती होने की इच्छा प्रकट की। आज की तरह सती प्रथा पर पाबन्दी नहीं थी लोग सती होने को देवइच्छा तथा सौभाग्य सूचक मानते थे। बारात के साथ मृत देह तथा उस देह की पत्नी मामडोली गांव आये। पाण्डिया परिवार सम्पन्न परिवार था। परिवार के सदस्य के नाम अकेले 555 बीघा जमीन थी। सती ने चिता में प्रवेश करते ही कहा कि मेरे मृत पति के नाम जो भी जमीन हिस्से में है सारी गोचर छोड़ दी जाये। सती ने गाजे बाजे के साथ अपने मृत पति की देह को गोद में लिया तथा चिता में बैठकर देवलोक प्रयाण किया।मामडोली गांव में आज भी जो 555 बीघा गोचर हैं वह सतीजी के ही नाम है, उस गोचर में सतीजी का एक छोटा सा मन्दिर बना हुआ है। आज तक पाण्डिया परिवार के सदस्य जात झडूला तथा परणी फेरी तथा गंठजोड़े की जात देते आये हैं।उत्सव पर्व पर सतीजी के थान पर प्रसाद चढ़ाते हैं और पूजा करते हैं। पाण्डिया परिवार करीब 600 वर्ष पहले मेहरासर त. सरदारशहर जि. चूरू से आकर यहां बसा हुआ है। प्रस्तुत विवरण मामडोली के ही कालूरामजी पाण्डिया द्वारा दिया गया हैं।