श्री सतीमाता डाबड़ा
देश की आजादी में स्वर्णिम अक्षरों में लिखे गये नाम वाला गांव डाबड़ा त. डीडवाना पारीक समाज के लिए विशेष गौरवशाली रहा है। इसी गांव में सिकराली के चुन्नीलालजी पाण्डिया अपने अन्य साथियों के साथ देश की आजादी के लिए शहीद हुए थे। इसी गांव की पाण्डिया परिवार की एक माता अपने पति की चिता पर सती हुई थी। ईस्वी 1557 के आस पास अकबर कालीन शासन में डाबड़ा गांव में मनसुखजी पाण्डिया रहते थे।आपकी ससुराल नांदोली त. परबतसर में बरणा जोशियों के यहां थी। आपका भरा पूरा खुशहाल परिवार सामाजिक प्रतिष्ठा में अग्रणीय था। देवयोग से आपका बिना किसी बीमारी के अचानक स्वर्गवास हो गया आपकी धर्मपत्नी उस समय अपने पीहर नांदोली में थी। आपकी पत्नी को लाने वास्ते डाबड़ा से नांदोली एक घुड़सवार को भेजा गया मनसुखजी के देवलोक गमन समय से ही उनकी पत्नी अत्यधिक बैचेन अवस्था में ही अपने पारिवारिक सदस्यों को लेकर नांदोली से डाबड़ा बिना किसी पूर्व सूचना के रवाना हो गयी। आपके शब्द थे ''कुछ अनहोनी डागड़ा गांव में हो गई है'' मुझे जल्दी जाना है। रास्ते में घुड़सवार के मिलने पर आपको वस्तुस्थिती का ज्ञान हुआ डाबड़ा पहुंचकर आप गांव के बीचों बीच विशाल बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गई तथा ध्यान मग्न हो गई। पारिवारिक सदस्य शोकमग्न थे अचानक ऐसी स्थिती का सामना होने से आप सभी किंकर्तव्यविमूढ हो गये। आपने आदेशात्मक स्वरों से हुकम दिया कि श्रृगांर की सामग्री उपलब्ध करवाई जाये मैं सती होउंगी। इस घोषणा से परिवार में ही नहीं पूरे गांव में आश्चर्य, दुख शोक तथा खुशी की मिलीजुली प्रतिक्रिया हुई। आज की तरह सती प्रथा पर कोई नहीं थी, सामग्री उपलब्ध करवाई गई।आपने सोलह श्रृगांर किया तथा चिता पर बैठने की तैयारी की। सती ने गाजे बाजे के साथ चिता में प्रवेश किया तथा अपने पति के साथ देवलोक गमन किया। डाबड़ा के श्मशान में सती माता का मन्दिर मौजूद है। उसमें देवली है जिस पर सतीमाता का नाम तथा संवत् लिखा हआ है जो अस्पष्ट है पढ़ने में नहीं आता है। डाबड़ा गांव तथा अन्य पारिवारिक सदस्य सतीजी के उस छोटे मंदिर में आज भी जात झडूला देने आते हैं।मैंने भी मन्दिर को श्री दयानन्दजी पाण्डिया के साथ जाकर देखा था।