पाडामाता
डीडवाना झील के निकट स्थित सरकी माता अथवा पाडामाता का मन्दिर अत्यन्त प्राचीन हैं। यह मन्दिर मूलत: शिवमन्दिर था, इसकी जंघा भाग की पश्चिम प्रधान ताक में नटराज शिव प्रतिमा आज भी मौजुद है। उत्तर की प्रधान ताक में महिषासुर का वधा करती हुई दुर्गा तथा दक्षिण की प्रधान ताक में नृत्यरत गणेश स्थापित है। श्री रघुनाथप्रसादजी के अनुसार परा, पराख्या, पाड़ोखा, पड़ाय, पाढा माता के नाम से जिस माता की मान्यता है वह डीडवाना से 12 कि.मी. दूर की नमक की खान पर है। वाया मारवाड़ वालिया स्टेशन से 2 कि.मी. दूर है। पाढा माता मंदिर का निमार्ण वि.सं. 902 वार गुरूवार आसोज सुदी 9 की डीडवाना झील में हुआ। माता मंदिर प्रांगण में स्थित कैर के पेड़ से प्रकट हुई। वि.सं. 902 में मंदिर का निर्माण भैसासेठ में करवाया। संवत् 1610 जेठ बदी 2 मंगलवार को माता के मंदिर की जोड़ी मुगल काल में किसी अग्रवाल ने बनबाई। संवत् 1803 श्रावण सुदी 4 शुक्रवार को पुरोहित खेमराज सहदेव गोलवाल व्यास ने मंदिर का द्वार बनवाया। 1765 में एक अंग्रेज अधिकारी ने मंदिर का बरामदा बनवाया। मन्दिर के अहाते में 16 खंभो का टांका भी बनाया गया हैं। इस माता को पेड़ से प्रकट होने के कारण पाड़ा माता कहते है। इस पुस्तक के लेखक ने स्वयं माताजी के मन्दिर में अनुज महेशकुमार के साथ दर्शन किया।