ब्रह्मा ने वृहस्पति को व्याकरण पढ़ाया, वृहस्पति ने इन्द्र को, इन्द्र ने भारद्वाज को, भारद्वाज ने ऋषियों को, ऋषियों ने ब्राह्मणों क। वही यह अक्षर समाम्नाय है।
विद्या का मूल लिपी है। वह लिपी आदि में ब्रह्मा ने दी इसलिए भारत की मूल लिपी का नाम ब्राह्मी लिपी है।
भारत के अंतों में सर्वत्र म्लेच्छ बस्तियां हैं। पूर्वान्त में किरात और पश्चिम में वयन है, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य मध्य अर्थात आयावर्त आदि में हैं। शुद्र भिन्न-भिन्न भागों में बिखरे हैं। मोहनजोदड़ो और सौराष्ट्र की सीमा स्थानों पर यवन और उनके साथी असुरों आदि की बस्तियां थी। कभी ये यवन आदि संस्कृत भाषी विशुद्ध आर्य थे। कालान्तर में ये म्लेच्छ हो गए। भारत वर्ष जम्बूद्वीप का एक भाग है। पहले जम्बूद्वीप पर ही नहीं प्रत्युत संपूर्ण द्वीपों के बसनीय खंडों पर आर्यों का निवास था। कालान्तर में भाषा में अस्पृश्यता आयी और म्लेच्छ लोग उत्पन्न हो गए। लोगों का स्थान संकुचित होता गया। पुन: भारत में भी उनका वास भाग संकुचित हुआ। भारत की सीमाओं पर म्लेच्छ लोग उत्पन्न हो गए। अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु ये चार मूल गौत्र थे। अन्य गौत्र कर्म से उत्पन्न हुए। गौत्र परम्परा प्राचीन काल से चली आई है। तथागत बुद्ध भी अपना गौत्र जानता था। गौत्र प्रवर्तक ऋषि भारत में रहा करते थे। उनकी सन्तति और उनके शिष्य, प्रशिष्य सतयुग से चले आ रहे थे। तभी से उनमें से अनेकों की मातृभूमि भारत थी।
समाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने गौत्र, वेद, उपवेद, शाखा, सूत्र, प्रवर, पाद, शिखा एवं देवता आदि की पूर्ण जानकारी रखे। हमारी 103 शाखायें हैं। पारीक्ष ब्राह्मणोत्पत्ति के अनुसार इनका सरल एवं सुबोध अर्थ निम्न प्रकार है -
1. गौत्र - "प्रारंभ में जो ऋषि जिस वंश को चलाता है, वह ऋषि उस वंश का गौत्र माना जाता है।
2. वेद - "गौत्र प्रवर्तक ऋषि जिस वेद को चिन्तन, व्याख्यादि के अध्ययन एवं वंशानुगत निरन्तरता पढ़ने की आज्ञा अपने वंशजों को देता है, उस वंश का वही वेद माना जाता है।
3. उपवेद - "वेदों की सहायता के लिए कलाकौशल का प्रचार कर संसार की सामाजिक उन्नति का मार्ग बतलाने वाले शास्त्र का नाम उपवेद है।
4. शाखा - "प्रत्येक वेद में कई शाखायें होती हैं। जैसे ऋग्वेद की 21 शाखा, यजुर्वेद की 101 शाखा, सामवेद की 1000 शाखा, अथर्ववेद की 9 शाखा है। इस प्रकार चारों वेदों की 1131 शाखा होती है। प्रत्येक वेद की अथवा अपने ही वेद की समस्त शाखाओं को अल्पायु मानव नहीं पढ़ सकता, इसलिए महर्षियों ने 1 शाखा अवश्य पढ़ने का पूर्व में नियम बनाया था और अपने गौत्र में उत्पन्न होने वालों को आज्ञा दी कि वे अपने वेद की अमूक शाखा को अवश्य पढ़ा करें, इसलिए जिस गौत्र वालों को जिस शाखा के पढ़ने का आदेश दिया, उस गौत्र की वही शाखा हो गई। जैसे पराशर गौत्र का शुक्ल यजुर्वेद है और यजुर्वेद की 101 शाखा है। वेद की इन सब शाखाओं को कोई भी व्यक्ति नहीं पढ़ सकता, इसलिए उसकी एक शाखा (माध्यन्दिनी) को प्रत्येक व्यक्ति 1-2 साल में पढ़ कर अपने धर्म-कर्म में निपुण हो सकता है।
5. सूत्र - "वेदानुकूल स्मृतियों में ब्राह्मणों के जिन षोडश (16) संस्कारों का वर्णन किया है, उन षोडश संस्कारों की विधि बतलाने वाले ग्रन्थ ऋषियों ने सूत्र रूप में लिखे हैं और वे ग्रन्थ भिन्न-भिन्न गौत्रों के लिए निर्धारित वेदों के भिन्न-भिन्न सूत्र ग्रन्थ हैं।
6. प्रवर - "वैदिक कर्म-यज्ञ-विवाहादिक में पिता, पितामह, प्रपितामहादि का नाम लेकर संकल्प पढ़ा जाता है (यह रीति कर्म-काण्डियों में अब भी विद्यमान है) इन्हें ही प्रवर कहते हैं। इनकी जानकारी के बिना कोई भी ब्राह्मण धर्म-कार्य का अधिकारी नहीं हो सकता, अत: इनका जानना भी अति आवश्यक है।
7. पाद - "वेद-स्मृतियों में कहे हुए धर्म-कर्म में पाद नवा कर बैठने की आज्ञा है। जिस गौत्र का जो पाद है, उसको उसी पाद को नवाकर बैठ कर वह कर्म करना चाहिये।
8. शिखा - "जिस समय बालक का मुण्डन संस्कार होता है, उस समय बालक के शिखा रखने का नियम है। जिनकी दक्षिण शिखा है, उनको दक्षिण तरफ और जिनकी वाम शिखा है, उनको वाम की तरफ शिखा रखवानी चाहिये।
9. देवता - "सृष्टि के आदि में ब्रह्माजी ने जिस देवता द्वारा ऋषियों को जिस वेद का उपदेश दिलवाया, उस वेद का वही देवता माना गया।
जैसे –
अग्निवायुरविभयस्तु त्रयं ब्रह्म सनातनम्।
दुदोह यज्ञसिद्धयर्थमृम्यजु: सामलक्षणम्।। (मनु: 1/23)
अर्थ- अग्नि, वायु, सूर्य इन देवताओं से यज्ञ का प्रचार करने के लिए ऋक्, यजु:, साम इन तीन वेदों का प्रचार प्रजापति ने करवाया, इसिलये जिस वेद का जिस देवता ने प्रथम उपदेश दिया, उस वेद का वही देवता माना गया। इस प्रकार गौत्र, वेद, उपवेद, शाखा, सूत्र, प्रवर, शिखा, पाद और देवता इन 9 बातों को जानना प्रत्येक ब्राह्मण का धर्म है। इन्हीं 9 बातों के आधार पर महर्षियों ने नवगुणित यज्ञोपवीत का निर्माण किया गया था। यज्ञोपवीत (जनेऊ) 9 सूत्रों का होता है, जिसमें प्रत्येक सूत्र में इन्हीं देवताओं का आह्वान करके उसमें इनकी प्रतिष्ठा की जाती है।"