सृष्टि रचना क उद्देश्य से ब्रह्माजी ने अपनी योगमाया से 14 मानसपुत्र उत्पन्न किए:-
1. सनक 2. समन्दन 3. सनातन. 4. सनत्कुमार 5. स्कन्ध 6. नारद 7. रुद्र 8. अभि 9. वशिष्ठ 10. कश्यप 11. गौतम 12. भारद्वाज 13. विश्वामित्र 14. कौशिक
ब्रह्माजी के उक्त मानस पुत्रों में से प्रथम सात मानस पुत्र तो वैराग्य योग में लग गए तथा शेष सात मानस पुत्रों ने गृहस्थ जीवन अंगीकार किया. गृहस्थ जीवन के साथ-साथ वे योग, यज्ञ, तपस्या तथा अध्ययन एवं शास्त्रास्त्र प्रशिक्षण का कार्य भी करने लगे. अपने सात मानस पुत्रों को, जिन्होंने गृहस्थ जीवन अंगीकार किया था ब्रह्माजी ने उन्हें विभिन्न क्षेत्र देकर उस क्षेत्र का विशेषज्ञ बनाया था ।
'सप्त ब्रह्मर्षि देवर्षि महर्षि परमर्षय:।
कण्डर्षिश्च श्रुतर्षिश्च राजर्षिश्च क्रमावश:।।
1. ब्रह्मर्षि 2. देवर्षि 3. महर्षि 4. परमर्षि 5. काण्डर्षि 6. श्रुतर्षि 7. राजर्षि
उक्त ऋषियों का कार्य अपने क्षेत्र में खोज करना तथा प्राप्त परिणामों से दूसरों को अवगत कराना व शिक्षा देना था। मन्वन्तर में वशिष्ठ ऋषि हुए हैं, उस मन्वन्तर में उन्हें ब्रह्मर्षि की उपाधि मिली है। वशिष्ठ जी ने गृहस्थाश्रम की पालना करते हुए सृष्टि वर्धन, रक्षा, यज्ञ आदि से संसार को दिशा बोध दिया।
वशिष्ठ जी की पत्नी का नाम अरुन्धति था। पुराणों में देवताओं द्वारा मानस सरोवर पर यज्ञ करना, खली नामक दानव का यज्ञ को विध्वंस करना, वशिष्ठ जी द्वारा अपनी तपस्या के बल पर राक्षसों को भस्म करना तथा देवताओं द्वारा प्रसन्न होकर देविका स्थान वशिष्ठ को देना। वशिष्ठ जी का अपनी पत्नी के साथ देविका स्थान पर तपस्या करना - वशिष्ठ जी संतानों का नीचे वनों में आकर आश्रम बनाकर अध्यापन करना, गौड़ देश में विकास से गौड़ ब्राह्मण कहलाना फिर उनके अनेकानेक भेद यथा मिथिला क्षेत्र में जाकर रहने से मैथिली, सारस्वत क्षेत्र में आकर रहने से सारस्वत, कान्य-कुन्ज में रहने से कान्य-कुंज आदि अनेकानेक प्रसंग एवं कथायें प्रचीन ग्रन्थों में मिलती हैं।
वशिष्ठ जी के शक्ति आदि एक सौ पुत्र हुए। पुराणों में कामधेनु द्वारा वशिष्ठ जी की मनोकामना पूर्ण करने का, विश्वामित्र द्वारा कामधेनु को मांगना एवं वशिष्ठ का इनकार करना, विश्वामित्र द्वारा कामधेनु को बलपूर्वक ले जाने का प्रयत्न, कामधेनु द्वारा विश्वामित्र की सेना एवं पुत्रों का विनाश, विश्वामित्र द्वारा शंकर भगवान की आराधना, शिवजी से शक्तिशाली अस्त्र प्राप्त कर वशिष्ठ जी पर पुन: आक्रमण, वशिष्ठ जी पर ब्रह्मास्त्र चलाना, ब्रह्मास्त्र का वशिष्ठ जी पर उनकी तपस्या के फलस्वरूप कोई प्रभाव न होना, विश्वामित्र द्वारा ब्रह्मबल प्राप्त करने हेतु घोर तपस्या करना, वशिष्ठ जी के पुत्र शक्ति एवं राजा सुदास का प्रकरण, राजा सुदास का शक्ति मुनि को कोड़े मारना, शक्ति मुनि का राजा को राक्षस बनने का शाप देना, राक्षस के रूप मे वशिष्ठ जी को धोखे से मारने का मन्तव्य, वशिष्ठ जी को विश्वामित्र के प्रति आदर भावना की जानकारी विश्वामित्र को होना, विश्वामित्र द्वारा वशिष्ठ जी से क्षमायाचना करना आदि प्रकरण विस्तार से पुराणादि में दिग्दर्शित किये गये हैं। अत: विस्तार भय से उनकी पुनरावृत्ति नहीं की जा रही है।
वशिष्ठ को ब्रह्मबल प्राप्त था इसलिए वो ब्रह्मर्षि कहलाये।