राजस्थान के नागौर जिले में परबतसर कसबे से 4 से मी की दूरी पर पिप्पलाद ग्राम हैं। जहां अब तक की गई खोज द्वारा यह साबित होता है कि हमारे पुराण ग्रन्थों में वर्णित पिप्पलाद तीर्थ यहीं विद्यमान हैं। जगतजननी मां भगवती के कृपा पात्र भारतीय अध्यात्मिक इतिहास के तपस्वी ऋषियों में से एक उज्ज्वल रत्न महान त्यागी महर्षि दधिची के परमप्रतापी पुत्र पिप्पलाद मुनि के नाम पर हमारेपुप पुराणों में जिस पिप्पलाद तीर्थ की महिमा का वर्णन हुआ हैं वह यहीं हैं। पिप्पलाद ग्राम में स्थित दक्षिण की ओर की पहाड़ी व उसकी तलहटी में उत्तर की ओर स्थित सरोवर ही पिप्पलाद तीर्थ हैं। एक समय था जब पिप्पलाद ग्राम आबदी की द्वष्टि से भी सैकड़ां वर्षो पूर्व तक एक समृद्धिशाली विशाल नगर था। पुष्कर तीर्थ के समीप अजमेंर नगर की बसावट तक भी पिप्पलाद की गणना विशाल नगरों में की जाती थी। इसके उत्तर में समीपस्थ नगर परबतसर जीसका तब अस्तित्व ही नहीं था पिप्पलाद की सीमा में था। आज यहां परबतसर के बाजर में भू.पू. मारवाड़ राज्य में निर्मित सायर भवन हुआ हैं उससे कुछ आगे तक इसी की सीमा मानी जाती रही है, परन्तु जिसकी पिप्पलाद से आज 4 मील की दूरी हो गई है। पिप्पलाद से दक्षिण पश्चिम के आज के गांव भी तब नहीं थे और न पूर्व में ही थें, इस ओर के वर्तमान सभी गांव इसके मौंहल्ले थे। पिप्पलाद से दक्षिण पूर्व की ओर स्थित मेहगांव पिप्पलाद को महावास पुकारा जाता था। दाधीच ब्रह्मणों की प्रचुरता इस बास में थी और आज भी दाधीच ब्रह्मणों के कतिपय गौत्र जो देश के दूर, समीप अंचलो में जाकर बस गयें है मूलत: अपने पूर्वजों को मेहगांव का निवासी बताते है। महर्षि दधिची के यशस्वी पुत्र पिप्पलाद ऋषि के नाम का कई सदियों पूर्व स्थापित पिप्पलाद ग्राम में स्थित दक्षिण पश्च्मि की पहाड़ी के जांच करने से यह ज्ञात होता हैं, कि यहां के लोगो की धारणा अनुचित नहीं हैं। यहां की पहाड़ी कभी अधिक उंची थी और अब शनै: शनै: पृथ्वी में धंरा रही है। विचित्र बात इस पहाड़ी के लिए यह भी है कि इस क्षेत्र के अन्य पहाड़ पहाडि़यों से यह नितान्त भिन्न हैं, बनावट एवं पत्थर सभी दृष्टियों से इस पहाड़ी का अन्य पहाडि़यों से सबसे निराला रूप है इस पहाड़ी पर मुस्लिम शासन काल में बनी हुई एक मस्जिद नीचे बनी हुई सड़क से दिखाई देती हैं जो सैकड़ो हजारों वर्ष पुरानी है, इस मस्जिद के दक्षिण पश्च्मि की ओर तीन तरफ से अधर एक चट्टान है जिसके नीचे गुफा हैं। यहां के लोगों में पीढीयों से यह धारणा चली आ रही है कि इस गुफा का सम्बन्ध तीर्थराज पुष्कर से है। इस गुफा में थोड़ी दूर अंदर जाने पर भगवान
आशुतोष के शिवलिंग स्वरूप तथा नन्देश्वर की प्रतिमाएं जीर्ण अवस्था में दृष्टिगोचर हुई। प्रतिमाओं को पत्थर एंव बनावट की दृष्टि से आधुनिक काल की कतई नहीं माना जा सकता। पिप्पलाद में पहाड़ी पर गुफा में स्थित श्री आशुतोष की शिवलिंग स्वरूप प्रतिमा ही पिप्पलाद मुनि द्वारा सेवित है तथा पदमपुराम में वर्णित भगवान दुग्धेश्वर महादेव है। इच्छा नाड़ी के नाम से विख्यात जलाशय यहां विद्यमान है।