"श्री"
एक एव पुर वेद: प्रणव: सर्ववाङमय देवो नारायणो नान्योरहयेकोsग्निवर्ण एव च।
न विशेषोsस्ति वर्णानां सर्व ब्रह्ममयं जगत। प्रथम: ब्राह्मण: कर्मणा वर्णतां गत:।।
पहले वेद एक था। ओंकार में संपूर्ण वांगमय समाहित था। एक देव नारायण था। एक अग्नि और एक वर्ण था। वर्णों में कोई वैशिष्ट्यर नहीं था सब कुछ ब्रह्मामय था। सर्वप्रथम ब्राह्मण बनाया गया और फिर कर्मानुसार दूसरे वर्ण बनते गए. सभी व्यूक्ति विराट पुरुष की संतान हैं और सभी थोड़ा बहुत ज्ञान भी रखते हैं तो भी वो अपने आप को ब्राह्मण नहीं कहते। एक निरक्षर भट्टाचार्य मात्र ब्राह्मण के घर जन्म लेने से अपने आपको ब्राह्मण कहता है। और न केवल वही कहता है अपितु भिन्नन-भिन्नर समाजों के व्यहक्ति भी उसे पण्डितजी कहकर पुकारते हैं। लोकाचार सब न्या यों में व सब प्रमाणों में बलवान माना जाता है "सर्व ब्रह्मामयं जगत" अनुसार सब कुछ ब्रह्म है और ब्रह्म की संतान सभी ब्राह्मण हैं। डॉ. रामेश्वार दत्त शर्मा द्वारा लिखित पुस्तटक 'ब्राह्मण समाज परिचय एवं योगदान' के मुखपृष्ठ पर अंकित ब्रह्मरूपी वृक्ष में 14 शाखाएं हैं और इन चौदह शाखाओं में अलग-अलग ब्राह्मणों का वर्णन किया गया है।
जैसे 1. गौड़ आदि गौड़, बंगाली और त्यागी 2. सारस्वत, कुमडिये, जैतली, झिगन, त्रिखे, मोहल्ले, कश्मीरी 3. खण्डेलवाल, दायमा, पुष्करणा, श्रीमाली, पारीक, पालीवाल, चोरसिया 4. कान्यकुब्ज, भुमिहार, सरयूपारीण, सनाढय, जिझौतिया 5. मैथल, श्रोत्रिय 6. उत्कल, मस्ताना 7. सुवर्णकार, पांचाल, शिल्पयान, जांगडा, धीमान 8. गोस्वामी, आचार्य, डाकोत, वेरागी, जोगी, ब्रह्मभाट 9. कौचद्वीपी, शाकद्वीपी 10. कर्णाटक 11. तैलंग, बेल्लारी, बगिनाड, मुर्किनाड़ 12. द्राविड़, नम्बूदरी 13. महाराष्ट चितपावन 14. गुर्जर, औदित्य, गुर्जर गौड़ नागर तथा देशाई। इस प्रकार ब्राह्मणों के कुछ 54 भेद हुए। जब ब्राह्मण एक जाति बन गई तो उनकी पहचान के लिए उनके वेद, शाखा, सूत्र गोत्र, प्रवर आदि पहचान कारक माने गए। यह क्रम मध्यकाल तक चलता रहा। तदन्तर ब्राह्मणों के भेद उनके प्रदेशों के आधार पर गठित किए गए।
पं. छोटेलाल शर्मा ने अपने ब्राह्मण निर्णय में ब्राह्मणों के 324 भेद लिखे हैं। ब्लूम फील्ड के अनुसार ब्राह्मणों के 2500 भेद हैं। शेरिंग साहब के अनुसार ब्राह्मणों के 1782 भेद हैं, कुक साहब के अनुसार ब्राह्मणों के 924 भेद हैं, जाति भास्कर आदि ग्रन्थों के अनुसार ब्राह्मणों के 51 भेद हैं। वैदिक काल में और उसके बहुत समय बाद तक किसी ना के साथ उपाधि लगती दिखाई नहीं देती। केवल नामों का ही उल्लेख मिलता है। जैसे कश्यप, नारद, वशिष्ठ, पराशर, शांडिल्य, गौतम आदि, बाद में मनु के चारों वर्णों के चार आस्पदों का उल्लेख मिलता है। अर्थात ब्राह्मण शर्मा, क्षत्रिय वर्मा, वैश्य गुप्त तथा शुद्र दास आदि शब्दों का प्रयोग अपने नाम के पीछे करने लगे। बहुत समय बाद गुण, कर्म और वृति के सूचक तथा प्रशासकों, राजा-महाराजाओं द्वारा प्रदत्त उपाधियों का प्रयोग होने लगा। अधिकांश उपाधियां मुस्लिमकाल में प्रचलित हुईं। स्मृति और पुराणों के युग के बाद ब्राह्मणों की भट्ट और मिश्रा उपाधियां अधिक मिलीं। महाराजा गोविन्द चन्द्रदेव आदि गहखार राजाओं के समय ठाकुर और राउत पदवी भी ब्राह्मणों के लिए प्रयुक्त होने के प्रमाण मिलते हैं। मिश्रा, पाण्डेय, शुक्ल, द्विवेदी, चतुर्वेदी आदि उपाधियां शासन द्वारा प्रदत्त हैं। उसी समय की रायसिंह आदि उपाधियां शासन द्वारा प्रदत्त हैं। जो पाण्डेय, द्विवेदी आदि उपाधिधारी थे वे बाद में शासन द्वारा राय, सिंह, चौधरी आदि हो गए। मुस्लिम शासन के समय मियां, खान आदि उपाधियां ब्राह्मणों को दी गई। तानसेन मिश्र को मियां की उपाधि दी गई थी। वेद पढ़ने पढ़ाने से द्विवेदी (दूबे) हो गए। त्रिवेदी (तिवाड़ी), चतुर्वेदी (चौबे), अध्यापक होने से (पाठक) उपाध्याय (ओझा), यज्ञादि कर्मानुष्ठान कराने से वाजपेयी, अग्निहोत्री, अवस्थी, दीक्षित और समृति कर्मानुष्ठान कराने से मिश्र, शुक्ल वंश के पुरुष के नाम से शांडिल्य (सान्याल) पदवी के नाम से चक्रवर्ती, मुखर्जी, चटर्जी, बनर्जी, गांगुली, भट्टाचार्य कार्य व गुण के कारण से दीक्षित सनाढ्य याजक नैगम, आचार्य वेद की पद, क्रम, जटा, माला, रेखाध्वज, दंडरथ और धनपाठ आदि आठ पद्धतियों में से तीन प्रकार के पाठ करने वाले त्रिपाठी कहलाए।
भिन्न-भिन्न उपाधियों के कारण उच्च पदासीन राजनेताओं व अन्य प्रमुख हस्तियों को जो ब्राह्मण हैं, हम आज तक जान नहीं पाए हैं। इनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं- श्री राजगोपालाचार्य, डॉ. राधाकृष्णन, गोपाल स्वरूप पाठक, बी. डी. जती, वी.वी. गिरी, आर वेंकटरमन, डॉ. शंकरदयाल शर्मा, जी.वी. मावलंकर, अनतशयनय अयंगार, शिवराज पाटिल, टी.एन. शेषन, रंगनाथन मिश्र, श्री लालनारायण सिंह, भूलाभाई देसाई, श्री पी.वी. नरसिंहराव, विधानचन्द्र राय, श्री डी.ए. देसाई, जय ललिता, एन.वी. खरे, नृपेन्द्र चक्रवर्ती, प्रफुल्ल कुमार महन्तो, ई.एस. नम्बूदरीपाद, कैप्टन रमेशचन्द्र बक्सी, लेफ्टिनेंट कर्नल हरिवंशसिंह महतो, श्री भुपेन्द्र कुमार वैद्य, श्री कृष्ण चन्द्र भट्ट, माधवराव पेशवा, सेनापति वापट, श्री टी.सी. रैना, प्रदीप कुमार त्यागी, विजयलक्ष्मी पंडित, सुष्मिता सेन, ऐश्वर्या राय, गुरूदत्त, सत्यजीत राय, किशोर कुमार, ऋषिकेश मुखर्जी, अनुपम खेर, अशोक कुमार गांगुली, उत्पल दत्त, मनमोहन देसाई, महेश भट्ट, आनन्द बक्सी, वीर शिरोमणि मंगल पांडे, वीर बहादुर तात्याटोपे, वीरांगना लक्ष्मी बाई, महान क्रांतिकारी पं. रामप्रसाद बिस्मिल्ल, चन्द्रशेखर आजाद, स्वातत्र्य वीर सावरकर, कल्पना दत्त, सुहासिनी गांगुली, शोभा रानीदत्त, अरूणा आसफ अली, किरण चक्रवर्ती, महादेव गोविन्द रानाडे, सुरेंद्र नाथ बेनर्जी, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महामना पं. मदन मोहन मालवीय, गोपाल कृष्ण गोखले, चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य, सुब्रमण्यम भारती, के.एम. मुंशी, विनोबा भावे, श्री राम शर्मा, गुरूदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, डॉ. केशवराय बलिराय हेडगेवार, माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर, पं. दीनदयाल उपाध्याय, मेजर सोमनाथ शर्मा, पू. थल सेनाध्यक्ष श्री जे.एन. चौधरी, मेजर आशाराम त्यागी, मेजर नीरोद वरूण बैनर्जी, वीर जयदत्त जोशी, अन्तरिक्ष यात्री राकेश शर्मा तथा महापंडित राहुल सांकृत्यायन ये सबके सब ब्राह्मण हैं, थे व रहेंगे, लेकिन समय के प्रभाव से उपाधियां अलग-अलग लग गई।
जब सारा विश्व अज्ञान के कोहरे से आच्छादित था तब लोग पहाड़ों में भेड़-बकरियां चराते फिरते थे। वो घास-फूस की झोपडि़यों व पर्वत की गुफाओं में रहते थे। पशुओं का कच्चा मांस खाते थे। उनकी खाल व वृक्षों की छाल को पहनते थे। जब न संस्कृति थी न सभ्यता थी न गिनती का ज्ञान था। प्राकृतिक आपदाओं का प्रतिकार था और न ही बीमारियों का कोई उपचार था तब वृहतर भारत में सुदूर अतीत में विभिन्न स्थानों पर ब्रह्मर्षियों ने वेद का साक्षात्कार किया था। वेद का अर्थ है ज्ञान, ज्ञान ईश्वर प्रदत्त है अत: वेद को अपौरूषेय कहा गया है। इतने बड़े वैदिक साहित्य की सरंचना तथा उसका अक्षुण परिक्षण करना कोई सहज कार्य नहीं है। विश्व के किसी भी समाज का आज तक इतना बड़ा योगदान न किसी ने देखा है और न ही किसी ने सुना है। विश्व ब्राह्मण समाज का सदा ऋणी एवं कृतज्ञ रहेगा। जब मानस पुत्रों की कोई संतान न होने से सृष्टि वृद्धि नहीं हुई तो फिर ब्रह्माजी ने अपने समान गुणों वाले सात मानस पुत्र पैदा किए। मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु एवं वशिष्ठ। सर्वप्रथम ये सात ब्राह्मण हुए। जिनमें पुलस्त्य की संतान राक्षस हो गई। तब छ: ब्राह्मण सर्वप्रथम हुए अतएव इन्हीं की वंश परम्परा चलकर छ:न्याति ब्राह्मण हुए। ब्राह्मणों के प्रथमोत्पति थान को मनु ने ब्रह्मावर्त नाम के देश से वर्णन किया है। ब्राह्मणें की उत्पत्ति बार-बार जिस देश में होती है उस देश को ब्रह्मावर्त कहते हैं। सम्वत् 1643 में महाराजा सवाई जयसिंह के अश्व मेघ यज्ञ में सर्व ब्राह्मणों की सम्मति से 'छ:न्याति संघ' की स्थापना की गई। जिसमें पारीक ब्राह्मणों को प्रथम स्थान पर रखा गया। सम्मेलन के निर्णय के अनुसार छ:न्याति संघ में भोजन व्यवहार एक और कन्या संबंध निज-निज वर्ग में निश्चित हुआ। छ:न्याति समुदाय में पारीक, सारस्वत दाहिमा, गौड़, गुर्जर गौड़, और सिखवाल एक भोजन में सम्मिलित हो गए। इनके पीछे खण्डेलवाल ब्राह्मण भी जब छ:न्याति में मिलने को तैयार हुए तो उनको कहीं तो स्वीकार किया कहीं नहीं किया।
राज प्रबंध चलाने हेतु अथवा प्रजा को न्याय दिलाने हेतु वेदों को आधार मानकर पुरोहित वर्ग ब्राह्मण के माध्यम से वैधानिक व्यवस्थाएं लेते थे। ब्राह्मण राजा को प्रजा के बारे में उसके कर्तव्यों के प्रति सचेत रखता था। प्रजा के कर्तव्य भी ब्राह्मण द्वारा निश्चित किए जाते थे। ब्राह्मणों के कठोर अनुशासन राजाओं को सहने पड़ते थे। इतिहास के पन्ने उलटने पर जानकारी मिलेगी कि ब्राह्मण के कठोर अनुशासन के नीचे दबकर रहना क्षत्रिय के लिए असहनीय हो उठा। चन्द्रगुप्त ने गुरू चाणक्य का वृषल संबोधन तो सहन कर लिया, किन्तु आगे चलकर अशोक ने बुद्ध धर्म को अपना लिया। ब्राह्मणों के यज्ञों पर पाबंदी लगा दी। ब्राह्मण समुदाय इस अपमान का सहन नहीं कर सका और उसने क्षत्रियों से सत्ता छीननी आरंभ कर दी। परिणाम स्वरूप ब्राह्मणों ने देश पर कई वर्षों तक राज किया। इनमें निम्नलिखित वंश राजवंश प्रसिद्ध हुए: 1. शुक 2. गृत्समद 3. शोनक 4. पुलिक 5. प्रद्यौत 6. पालक 7. विशाखपुप 8. अजय 9. नन्दीवर्धन। ईस्वी पूर्व 26 से 72 वर्ष के बीच वासुदेव भूमिमित्र नारायण तथा सुदर्शन नामक ब्राह्मण राजाओं ने राज किया। ईसा से 27 वर्ष पहले मेघस्वाती नामक राजा ने कणवायन ब्राह्मणों से ही मगध का राज लिया था। 250 ई. पूर्व बाकाटक नाम के एक ब्राह्मण का राज्य था। ईसा से 184 वर्ष पहले शुंग वंश में कुल 10 राजा हुए जिन्होने 112 वर्ष राज किया था। ये सभी ब्राह्मण थे। ईस्वी सन् 769 के असापास चच और चन्द्र ये दोनों ही राजा ब्राह्मण थे जिन्हें अरब विजेता मुहम्मद इब्न कासिम ने पराजित किया था। ईस्वी सन् 977 के पहले जयपाल का राज्य था जो ब्राह्मण था।
जिसे सुबुक्तगीन ने हराकर भटिंडा को राजधानी बनाया था। राज कार्यों के अलावा सामाजिक कार्यों में भी ब्राह्मण अग्रणी रहे हैं। इनमें त्यागमूर्ति गोस्वामी गणेश दत्त का नाम श्रद्धा से लिया जाता है। इनका जन्म 2 नवम्बर 1888 ईस्वी को ब्राह्मण परिवार में पाकिस्तान में धुरे वैदिक नदी चन्द्रभागा के तट पर प्राचीन चिन्मोट नगर जिला झंग में हुआ था। आपने जीवन में कश्मीर से कराची और पेशावर से पलवल तक 600 सनातन धर्म सभाएं, 600 मंदिर, 6 डिग्री कॉलेज, 110 हाई स्कूल, 150 संस्कृत विद्यालय, 310 कन्या विद्यालय, 200 गौशालाएं, 4 ब्रह्मचर्याश्रम, 500 महावीर दल तथा अनेकों औषधालय स्थापित किए थे। देश के लिए सर्वस्व समर्पण करने वाला नेहरू परिवार न केवल भारत में अपितु विश्व में बेजोड़ है। स्वाधीनता आंदोलन के समय पं. मोतीलाल नेहरू ने अपना विशालकाय आनन्द भवन राष्ट्र को समर्पित किया था। जिसकी कीमत उस समय करोड़ों रुपये थी।
राजा महेश्वरी प्रसाद नारायण देव (भूमिहार ब्राह्मण) ने सर्वप्रथम बिहार में आचार्य विनोबा भावे को एक लाख एकड़ भूमि दान में दी थी। डॉ. सर गणेश दत्त सिंह (भूमिहार ब्राह्मण) जो बिहार के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं, ने सर्वप्रथम पटना विश्वविद्यालय को चार लाख रु. दान में दिए थे। 1910 ईस्वी में रवीन्द्र नाथ टैगोर को उनकी अमर कृति 'गीतांजलि' पर नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। नोबेल पुरस्कार से प्राप्त पूरी रकम उन्होंने उस समय के सवा लाख रुपये शान्ति निकेतन में भेंट कर दिए। उनकी उस रकम से शान्ति निकेतन से कुछ दूर श्री निकेतन खोला गया। ब्राह्मण समाज में ही पद्मभूषण विभूषित महापंडित राहुल सांकृत्यायन का नाम विशेष आदर व सम्मान के साथ लिया जाता है। इनका बचपन का नाम केदारनाथ पांडेय था। ये संस्कृत, हिन्दी आदि चौंतीस भाषाओं के ज्ञाता थे। आपने 150 से अधिक पुस्तकें लिखी थी। ये भ्रमणशील व्यक्ति थे। इन्होंने चार बार तिब्बत, तीन बार चीन, अनेक बार जापान और रूस की यात्रा की थी। ये ईरान, अफगानिस्तान, श्रीलंका तथा अनेका बार यूरोप के देशों में गए थे। भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया था। आपने अपने जीवनकाल में पचास हजार से अधिक पृष्ठ लिखे थे। यही कारण था कि आप केदारनाथ पाण्डेय से महापण्डित राहुल सांकृत्यायन कहलाए।
सन् 1982 के आंकड़े के अनुसार राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सेनाध्यक्ष, मुख्य न्यायाधीश सभी ब्राह्मण थे। मंत्रियों में 18 में से 10, निजी सचिव 89 में 36, सचिव 500 में 310, मुख्य सचिव 26 में 14, राज्यपाल 26 में 13, उच्च न्यायालयों के जज 330 में 166, उच्चतम न्यायालय के जज 16 में 9, राजदूत 140 में 58, कुलपति 98 में 50, आई.ए.एस. अधिकारी 3300 में 2376, लोकसभा सदस्य 530 में 190, राज्यसभा सदस्य 244 में से 89, मुख्य कार्यकारी अधिकारी 175 में 105, ये सब ब्राह्मण थे।
जैसा कि पूर्व जानकारी में आया है ब्राह्मण सभी एक हैं। सभी परमपिता ब्रह्म की संतान हैं। ब्राह्मणोत्पतिमार्तन्ड के पृष्ठ संख्या 449 में पं. हरिकृष्ण शर्मा ने साफ लिखा है कि पहले विष्णु के नाभी कमल से ब्रह्माभये ब्रह्मा का ब्रह्मर्षिनाम करके पुत्र भया उसके वंश में पारब्रह्म नामक पुत्र भया उसका कृपाचार्य पुत्र भया कृपाचार्य के दो पुत्र भये उनके छोटा पुत्र शक्ति भया शक्ति के पांच पुत्र भये पाराशर प्रथम पुत्र से पारीक भये, दूसरे पुत्र सारस्वत के सारस्वत भये, तीसरे ग्वाला ऋषि से गौड़ भये, चौथे पुत्र गौतम से गुर्जर गौड़ भये, पांचवें पुत्र श्रृंगी से उनके वंश शिखवाल भये, छठे पुत्र दाधीच से दायमा या दाधीच भये।
हिमालयाsपि धानोsयं ख्यातों लोकेष पावन: अर्धयोजन विस्तार: पंचयोजन मायत:।
परिमन्डलयोर्मध्ये मेरूरूतम पर्वत: तत: सर्वा: सभुत्पन्ना वृतयों द्विजसतम।।
ऐरावती, वित्सता च विशाला देविका कुहू अर्थात प्रसतिर्यत्र विप्राणं श्रूयते भारतवर्षभ।।
अर्थात
संसार में पवित्र हिमालय प्रसिद्ध है। इसमें एक योजन चौड़ा और पांच योजन घेरेवाला मेरू पर्वत है। जहां पर मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है। यहीं से ऐरावती, वितस्ता, विशाल देविका और कुहू आदि नदियां निकलती हैं। यहीं पर ब्राह्मण उत्पन्न हुए हैं।