महर्षि पराशर शक्ति मुनि के पुत्र एवं ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जी के पौत्र थे। आपकी माता का नाम अदृश्यन्ति था जो उतथ्य मुनि की पुत्री थी। महर्षि पराशर जी का जन्म अपने पिता शक्ति की मृत्यू के बाद हुआ था, तथापि गर्भावस्था में ही इन्होंने पिता द्वारा कही हुई वेद ऋचायें कंठस्थ कर ली थी।
महर्षि पराशर ने विद्याध्ययन अपने पितामह वशिष्ठ जी के पास रहकर अपने ही किया। वे वशिष्ठ जी को ही अपना पिता समझते थे। एक बार पराशर जी की माता जी ने पराशर से कहा पुत्र जिन्हें तुम पिता कहते हो वे वास्तव में तुम्हारे पिता नहीं पितामह हैं1 पराशर जी के पूछने पर माता अदृश्यन्ती ने समस्त जानकारी उन्हें करा दी कि किस प्रकार तुम्हारे पिता को राक्षस ने तुम्हारे जन्म से पूर्व ही मार डाला था।
पिता की मृत्यू का ज्ञान होने पर महर्षि पराशर को क्रोध आना स्वभाविक ही था। वे सोचने लगे जिसके पिता एवं पितामह का देवतागण भी सर्वश्रेष्ठ तपस्वी एवं ज्ञानी होने के कारण इतना सम्मान करे, उनका भक्षण राक्षस करे- यह सहन नहीं हो सकता। ऐसा विचार कर महर्षि पराशर जी ने एक यज्ञ का आयोजन इस विचार से किया कि मैं अपने पिता के वैर का बदला लूंगा और पृथ्वी मंडल से मानव और दानव दोनों ही कुलों को नष्ट कर दूंगा। ब्रह्मर्षि के समझाने पर ऋषि का धर्म रक्षा करना है, पराशर ने मानव जाति को तो क्षमा कर दिया, किंतु राक्षसों के विनाश के लिए यज्ञ प्रारम्भ कर दिया।
यज्ञा द्वारा राक्षस कुलों का सर्वनाश होते देखकर पुलस्त्य जी ने पराशर से अनुनय-विनय की कि आप यह यज्ञ न करें। पराशर जी पुलस्त्य मुनि का बड़ा आदर करते थे। पराशर जी ने पुलस्त्य ऋषि की बात मान ली। राक्षस संहार यज्ञ की समाप्ति के लिए ब्रह्मर्षि वशिष्ठ ने पराशर को समझाया। वशिष्ठ जी की परपीड़ा इस कथन से कितनी परिलक्षित होती है कि मेरा वंश समाप्त होने को था, वंश समाप्ति की पीड़ा कितनी होती है मैं जानता हूं, जब शक्ति आदि मेरे सौ पुत्रों का नाश राक्षसों ने कर दिया था। क्या राक्षस वंश को समाप्त कर महर्षि पुलस्त्य जी को सतापित करना चाहते हो? पराशर जी ने अपने पितामह वशिष्ठ जी एवं अन्य महर्षियों के वचनों का आदर कर यज्ञ का विचार त्याग दिया। पुलस्त्य जी ने उन्हें आशीर्वाद के रूप में निम्न वरदान दिया
'पुराण संहिताकर्ता भवान्वत्स भविष्यति।
देवतापारमार्थ्य च यथावद्वेत्स्यते भवान्।।
अर्थात हे वत्स पराशर, पुराणों को संहिताबद्ध कर समस्त शास्त्रों के गूढ़ तत्वों को आत्मसात कर समस्त शास्त्रों में पारंगत होवोगे।
महर्षि पराशर जी का दिव्य जीवन जहां अत्यंत अलौकिक है वहीं अद्वितीय भी। उन्होंने धर्मशास्त्र, ज्योतिष, वास्तुकला, आयुर्वेद, नीतिशास्त्र, विषयक ज्ञान मानव मात्र को दिया। उनके द्वारा रचित ग्रन्थ वृहत्पराशर होराशास्त्र, लघुपराशरी, वृहत्पराशरीय धर्म संहिता, पराशर धर्म संहिता, पराशरोदितम, वास्तुशास्त्रम, पराशर संहिता(आयुर्वेद), पराशर महापुराण, पराशर नीतिशास्त्र, आदि मानव मात्र के लिए कल्याणार्थ रचित ग्रन्थ जग प्रसिद्ध हैं।