इंदु पारीक

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देवो की भूमि (भारतवर्ष) हमेशा से अपने दुर्लभता के लिए जानी जाती है | भारत ही पुरे संसार में इकलोता एसा देश है जहाँ ईश्वर के रूप में नारी शक्ति की भी पूजा की जाती है | इन नारी शक्ति को आप कोई भी नाम दे सकते है जैसे दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती इत्यादि | अपनी इसी खूबि के कारण आदिकाल से भारतवर्ष विश्व गुरु के रूप में पूजा जाता रहा है | हमारे देश में मातृशक्ति की हमेशा से पूजा की जाती रही है | ब्राह्मण हमारे देश में हमेशा से पूजनीय रहे है | इन्ही सर्वश्रेष्ट ब्राह्मण कुल में आज की “इंदु पारीक” का जन्म हुआ |

बात दिनांक 15 अगस्त 1963, वृश्पतिवार की है जब परमपिता परमात्मा ने स्व. श्यामस्वरूप जी जोशी एवं श्रीमती शकुन्तला देवी जोशी को फुल सी मासूम बच्ची की किलकारियों के रूप में अपना आशीर्वाद प्रदान किया | अजमेर के किशनगढ़ कस्बे के डीडवाडा निवासी स्व. श्यामस्वरूप जी जोशी पेशे से शिक्षक थे | उन्होंने पूरा जीवन गाँव के बच्चो को शिक्षित करते हुए बिताया | स्व. श्यामस्वरूप जी जोशी प्रधानाध्यापक के पद से सेवानिवृत हुए | विलक्ष्ण प्रतिभा की धनि इंदु को शिक्षा तो जैसे विरासत में मिली हो | उन्होंने शुरूआती शिक्षा अपने पड़-नाना (अपने माताश्री के दादा) वैध स्व. घनश्याम जी शर्मा से प्राप्त की | वैध स्व. घनश्याम जी शर्मा को ईश्वर ने विलक्ष्ण प्रतिभाओ से अलंकृत किया था | वे नों भाषाओं के प्रखर विद्वान थे | उन्होंने नन्ही सी इंदु को कक्षा नोंवी तक संस्कृत एवं अंग्रेज़ी भाषाओं में निपूर्ण बना दीया | पिता एवं पड़-नाना ने इस बच्ची में शिक्षा की एसी भूख पैदा की कि वो बच्ची आज राजस्थान न्यायिक सेवा के अंतर्गत अपर जिला एवं सैशन न्यायाधीश के गरिमामय पद पर आसीन है | आज उस नन्ही इंदु को हम सब  “इंदु पारीक” के रूप में जानते है |

बी.एस.सी., एल.एल.बी., डी.एल.एल. प्रथमवर्ष की इस छात्रा के जीवन में वो विशेष पल आया जिसकी कामना हरेक कन्या को रहती है और आजका समाज उसे परिणय के रूप में जानता है | दिनांक 20 मई 1986 के शुभ दिन आप का पाणिग्रहण संस्कार स्व. कृष्णसहाय जी पुरोहित एवं श्रीमती शांता देवी पुरोहित (गोत्र- वत्स, कंथाडीया) के पुत्र श्रीमान अरुणेन्द्र कुमार पारीक के संग संपन्न हुआ | श्रीमान अरुणेन्द्र पारीक एक सफल व्यापारी के साथ-साथ सफल अधिवक्ता भी है | ससुराल में आप को माँ के रूप में सासुमाँ मिली | समय के साथ-साथ आपको पुत्र वैभव एवं पुत्री विधि की माता बनने का गौरव प्राप्त हुआ | ससुर स्व. कृष्णसहाय जी पुरोहित एवं माँ श्रीमती शांता देवी ने आपको पढाई पूर्ण करने के लिए प्रेरित किया | विवाह के 8 वर्षो के पश्च्यात सन 1994 में आपने आर.जे.एस. की परीक्षा दी एवं सन 1996 से आपने मजिस्ट्रेट के गरिमामय पद पर अजमेर एवं भीलवाडा को अपनी सेवाएँ दी | 28 मई 2002 से आपने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के पद पर अजमेर, सवाई माधोपुर, करोली, राजगढ़ (सादुलपुर) को अपने सेवाओं से लाभान्वित किया | 30 अप्रेल 2010 को पदोन्नत होकर आपने झालावाड़ में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के पद पर  अपनी सेवाएँ दी | 8 जून 2011 से 29 अप्रेल 2014 तक आपने चुरू में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के गरिमामय पद को सुशोभित किया | स्वच्छ एवं दबंग छवि आपकी पहचान बन गई | आप हमेशा विवादों से दूर रही | सरकार ने आपको जहाँ भी सेवा करने भेजा आपने उस क्षेत्र के लोगो में अपनी अलग ही छवि बनाई | 30 अप्रेल 2014 को आपने अपर जिला एवं सैशन न्यायाधीश का कार्यभार संभाला | आप अपनी सफलता का श्रेय अपनी ससुर, सासुमाँ एवं जीवनसाथी को देती है | पढाई के दौरान आपकी सासुमाँ का आपको दिया गया सहयोग आपके मानसपटल पर उनकी अमिट छाप छोड़ गया | सासुमाँ के द्वारा आपके दोनों नन्हे बच्चो को स्कुल के लिए तैयार करना, उनका नास्ता एवं खाना तैयार करना, उनको स्कुल लेकर जाना इत्यादि एवं घर के देनिक कार्यो से आपको दूर रखना एवं पढाई करने के स्थान पर आपके लिए खाना लाकर खिलाना इत्यादि कार्य जिसे याद कर आज भी आपकी आँखे भर जाती है | आपका मानना है की सासुमाँ ने आपको कभी भी पुत्रवधू के रूप में नहीं देखा, उन्होंने हमेशा पुत्री के रूप में आपको अपना ममतामय आशीर्वाद प्रदान किया |

आपने बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने एवं पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए अनेको कार्य किये | कमजोर वर्ग के लोगो में सामाजिक जागरूकता लाने के लिए आप प्रयासरत है | आपको जब भी समय मिलता है आप इन्ही कार्यो को सफल बनाने में लग जाती है | एक लेखक होने के नाते मेरे लिए इस महान विचारधाराओ वाली विभूति के विषय में लिखना बहुत कठिन कार्य है | उनके द्वारा किये गए प्रेरणादायक कार्यो को कलमबद करना मेरे पहुँच से बाहर की चीज है | मेने “गागर में सागर को सम्हाने” का एक असफल प्रयास किया है | समस्त पारीक समाज को आप पर गर्व है |

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