गुर्जरगौड़ समाज

सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के मरीचि, अत्रि, अंगीरा, पुलस्‍त्‍य, पुलह, ऋतु, भृगु, वशिष्‍ठ, दक्ष, नारद ये दस पुत्र हुए। इनमें महर्षि भृगु को पर ब्रह्म नामक पुत्र हुआ। इनका जन्‍म गौड़ देश में हुआ। इनके पुत्र कृपाचार्य हुए। कृपाचार्य के शक्ति शर्मा और शक्ति शर्मा के पुत्र महर्षि गौतम हुए। गुर्जरदेश के राजा चक्रवर्ती गुर्जरकर्ण ने महर्षि गौतम को आराध्‍य माना।

एक बार भ्रमण करते करते गुर्जरकर्ण जनकराय के प्रदेश में प्रविष्‍ठ हुए। वहां पर सिंह तथा मृग एक साथ विचरण कर रहे थे, लताएं पुष्‍पों से एवं अनेक पेड़ फलों से लदे खड़े थे। उस प्रांत को देखकर राजा को आश्‍चर्य हुआ कि हो न हो यह किसी ऋषि का आश्रम है। ब्राह्मणों से पूछने पर ब्राह्मणों ने उत्तर दिया कि राजन। जिस स्‍थान पर आप खड़े हैं वह स्‍थान ब्रह्मऋषियों में श्रेष्‍ठ तपश्‍चर्या के भंडार श्री गौतम ऋषि का आश्रम है। यह सुनकर विलास वैभव की सब सामग्री आश्रम के बाहर छोड़कर राजा ऋषिवर के दर्शनार्थ आश्रम में पहुंचा। वहां देखा, पिप्‍पलाद मुनि के 12 पुत्र वत्‍स, गौतम, शाण्डिल्‍य, गर्ग, मुदगल, कश्‍यप, भारद्वाज, वशिष्‍ठ, औशनस, अत्रि, पाराशर और कौशिक समस्‍त ऋषि कुमार न्‍याय शास्‍त्र का अध्‍ययन कर रहे हैं एवं विद्वान तपस्‍वी श्रीमद गौतमऋषि विराजमान हैं। राजा ने ऋषि के चरणों में गिरकर साष्‍टांग दण्‍डवत किया राजा ने कहा महर्षि! आपके दर्शनों से मेरे समस्‍त कल्‍मष दूर हो गए एवं सब मनोरथ पूर्ण से हो गए। महर्षि ने भी राजा की कुशल मंगल पूछी।

राजा ने महर्षि गौतम से निवेदन किया कि ऋषिवर ! प्रजा अन्‍न जल के अभाव में कष्‍ठ उठा रही है कृपा कर के कोई उपाय कीजिए। इस पर गौतम ऋषि ने अपने तपोबल से उस राजा के राज्‍य में वृष्टि की। इस वर्षा से राजा, प्रजा समस्‍तजनों की श्रद्धा ऋषि में बढ़ गई और सब धन्‍य कहने लगे।

ऋषि ने एक योजन भूमि में अनेक प्रकार के अन्‍न उत्‍पन्‍न किए एवं समस्‍त प्रजा को कह दिया कि जिसको जितनी आवश्‍यकता हो वह इसमें से ले जाए, वह परमात्‍मा सबका पालन करेगा। इस प्रकार ऋषि ने प्रजा का पालन किया। कहते हैं कि ऋषि के बढ़ते हुए यश से कुछ ब्राह्मणों में द्वेष उत्‍पन्‍न हो गया, उन्‍होंने द्वेष वश ऋषि पर अनेक प्रकार के दोषारोपण किए। इन आरोपों से संतप्‍त होकर ऋषि पुन: तीर्थाटन के लिए रवाना हो गए। घूमते घूमते वो शिव क्षेत्र में पहुंच गए। वहां आकर ऋषिराज ने स्‍नान किया एवं वहीं निवास करके शिवजी की तपस्‍या करने लगे। वहीं पर ऋषि ने एक प्रेत उद्घार किया। उस तीर्थ स्‍थल पर ऋषि ने सात दिन तक एक पांव के अंगूठे पर खड़े होकर तपस्‍या की। भगवान शिव व पावर्ती ने उनकी तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर दर्शन दिए। ऋषि ने भगवत भक्ति एवं भगवत भक्‍तों का संग बना रहने का वरदान मांगा।

एक वर्ष की तपस्‍या के पश्‍चात ऋषि वापस पुष्‍कर आए। राजा ने उनका स्‍वागत किया। एक दिन अवसर देखकर राजा ने ऋषि से निवेदन किया कि महाराज! अब पुत्रेष्टि यज्ञ किया जाए। इस प्रकार महर्षि ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया। गौतम स्‍वयं आचार्य बने, उनके शिष्‍यों में से कोई ब्रह्मा कोई ऋत्विक कोई होता उपदेशिष्‍टा आदि याज्ञिक बने। पुत्रों में से कोई वरण और कोई यज्ञ के उपस्‍कृत्‍य में नियत हुए, बाकी कुल ब्राह्मण भूयसी दक्षिणा के अधिकारी हुए। यज्ञ की समाप्ति पर यज्ञ कुंड से अग्निदेव हाथ में पायस का पात्र लिए प्रकट हुए। रानी को भोजन के साथ पायस दिया गया एवं इस प्रकार रानी गर्भवती हुई। तदनन्‍तर राजा ने महर्षि के कुलगुरु बनने हेतु निवेदन किया इस प्रकार गौतम ऋषि ने उत्तर दिया कि मेरे ये 12 एवं 153 पुत्र तुम्‍हारे यहां रहेंगे। इन्‍हें ही तुम कुलगुरु और पुरोहित आदि मानो। इतना कह म‍हर्षि स्‍वयं माता अहिल्‍या के साथ तपोवन में लौट आये। गौतम के शेष 12 शिष्‍य इनके 153 पुत्रों के गुरु हुए। गौतमजी के ये पुत्र जिन-जिन ऋषि पुत्रों के पास पढ़े उन शिष्‍यों को उन्‍हीं ऋषि के नाम से गौत्र हुआ और गुर्जरदेश में बसकर गुर्जरदेश के राजा गुर्जरकर्ण के पूज्‍य हुए अत: गुर्जरगौड़ ब्राह्मण कहलाये। आदि में ये गौतम जी के पुत्र हैं अत: गौड़ नाम पाया तथा गुर्जर देश में रहने से गुर्जर कहलाए। इस प्रकार गुर्जरगौड़ नाम से जाति का नामकरण हुआ।

राजा गुर्जरकर्ण ने एक-एक गौतम पुत्र को एक-एक गांव दिया, जिस जिस पुत्र को जिस जिस नाम का गांव मिला उसी नाम का उनका आवंटक हो गया। अर्थात उपगोत्र बना। जो शुक्‍ल यजुर्वेदीय थे उनका दाजसनेयी, माध्‍यंदिनी और साम वेदियों और कौथुमी शाखा हुई और कृष्‍ण यजुर्वीयों की तैतरीय शाखा हुई। गौतम ऋषि के 12 शिष्‍यों के नाम पर ही उनके शिष्‍यों के गौत्र हुए उनका जो वेद शाखा थी वही शाखा शिष्‍यों की हुई। उन 12 शिष्‍यों ने गणपति के जिस नाम का स्‍मरण करवाकर विद्यारम्‍भ करवाया वही गणपति उसी गौत्रवालों के मान्‍य हो गऐ जैसे वत्‍स ने एकदंत, औशनस ने भालचंद्र, अत्रि ने मूषकवाहन, गर्ग ने गजानन, कश्‍यप ने हे रम्‍ब! पराशर ने सिद्धिईश, कौशिक ने ढूंढिराज, मुदगल ने सुमुख, गौतम ने शिवसुत, भारद्वाज ने विनायक, वशिष्‍ठ ने विघ्‍ननायक, शाण्डिल्‍य ने गणराज, इन नामों का स्‍मरण कराके वेदारम्‍भ करवाया इस कारण उक्‍त गणपति उक्‍त गौत्र वालें के मान्‍य हो गए।

गुर्जरगौड़ समाज में 9 उपनाम, 8 प्रचलित नाम, 84 शासन, 72 आनासन (छोड़) तथा 12 गौत्र प्रचलित हैं। कोलकाता में गुर्जरगौड़ समाज की निम्‍न संस्‍था है-

श्री बंग प्रांतीय गुर्जरगौड़ सेवा समिति, 50 महर्षि देवेंद्र रोड, 1 तल्‍ला, कोलकाता- 700006

ADS BY PAREEKMATRIMONIAL.IN
Gold Member

Maintained by Silicon Technology