फूलां बाई मन्दिर
नागौर कातर सड़क मार्ग पर नागैर से करीब 20 कि.मी. दूर गांव मांझवास में मारवाड़ की प्रसिद्ध भक्त फूलांबाई का मन्दिर है। फूलांबाई का जन्म वि.सं. 1648 भादवा सुदी चतुर्दशी को ग्राम मांझवास में हुवा। आपके पिताजी का नाम हेमोजी मांझु तथा माताजी का नाम जोजा था। आपने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया तथा उनी वस्त्र ही धारण किया। वि.सं. 1682 में पिलकुड़ी नाम के सरोवर के पास आपने तथा आपके भाई डूंगर ने जीवित समाधि ली थी। जोधपुर नरेश राव रिड़मल की चौथी पीढी में राजा जसवन्तसिंह के सेना को उनके लाव लश्कर सहित आपने भोजन कराकर अनोखा चमत्कार प्रस्तुत किया था। उन दिनों मारवाड़ में पानी की विकट समस्या थी, राजा के कहने पर फूलांबाई ने मिट्टी हटाकर 5 फुट गहराई पर गंगा उपस्थित कर दी थी जिससे राजा के दस हजार घोड़े तथा अन्य लाव लश्कर पानी पीकर तृप्त हो गये। एक मिट्टी के बर्तन में सभी घोड़ों को दाना प्रस्तुत किया गया तथा राजा की सेना को पातल, पातल पर फूलांबाई के रूप में प्रकट होकर भोजन कराया। महाराजा ने फूलांबाई को 5 स्वर्ण मुद्रा भेंट की तथा उनके शिष्य बनकर साथ आयी रानियों को उपदेश देने का आग्रह किया। आज भी मारवाड़ की बोली में यह प्रसिद्ध है कि ''गहणों गांठों तनकी शोभा, काया कर्मा से भांडो। फूली कह थे कुतियां हो सो, राम भजो ए रांडो। राम भजो ए रांडडि़या कहो हमारो मान, होसो काली कूकरी कीड़ा पड़सी कान। के इन्द्र के राजवी, के सूकर के श्वान। फूली तीनों लोक में कामी एक समान। आदूपति रिझायलों, इन पत सू के काम, फूली कह हे पापण्या, थे भजलो राजाराम, 37 वर्ष की अल्पायु में फूलांबाई ने राम राम करते हुए अपने प्राण त्याग दिये उसी स्थान पर उनकी स्माघि हैं जहां मन्दिर बना हुआ।