पुरोहित देवर्षिजी सेढू जी के वंशजों में से थे। आप उच्च कोटि के विद्वान, समाज सुधारक, संगठक तथा भगवद भक्त थे। आपके जीवन-वृत्त के संबंध में अधिक जानकारी नहीं मिलती है तथापि प्राप्त जानकारी के आधार पर संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि इन्होंने विक्रम संवत् 1531 में तत्कालीन आमेर राज्यान्तर्गत जमवारामगढ़ में पारीक जाति का एक विशाल महासम्मेलन आयोजित किया था। इस सम्मेलन की जानकारी के आधार पर उस समय जहां पारीक जाति के 9 अस्पद, 12 गोत्र एवं 103 शाखाएं विद्यमान थी वहीं इस सम्मेलन से उस समय हमारी कितनी जनसंख्या थी, इसकी भी जानकारी होती है। हमारे राव लालचंद जी ने देवर्षि जी के निर्देशानुसार जो गणना की उसके अनुसार उस समय पारीकों के 1,99,050 घरों की संख्या थी। वर्तमान मापदंड के अनुसार भी यदि एक परिवार के सदस्यों की संख्या पांच मानी जावे तो संवत 1531 में हमारी संख्या 9,95,250 थी। इस संबंध में पारीक्ष संहिता में श्री (श्री नृसिंहजी शिवरतनजी तिवाड़ी की सूचना के आधार पर) यह विवरण दिया गया है-
"वि.स. 1531 में सेढू जी के वंशज देव ऋषि जी ने जमुआ रामगढ़ में बड़ा भारी जाति सम्मेलन किया। उस समय उन्होंने अपने कुल गुरु (राव) लालचंद जी से समस्त प्रांतों के पारीक्षों की गणना कराई। उस समय भारत वर्ष के पारीक्षों की घर संख्या 1,99,050 थी।"
देवर्षि जी के ही संबंध में पारीक्ष ब्राह्मणोत्पत्ति में भी इसी प्रकार का एक संदर्भ दिया गया है- "इसके बाद संवत 1531 वि. में देवर्षि कठवड़ पराशर व्यास ने (जो जिला पाटण राज्य के गुरु थे और ग्रंथ "पारीक्ष ब्राह्मणोत्पत्ति" लेखक के पूर्वजों में थे) लालचंद नाम के पंडित को बहुत सा द्रव्य देकर पारीक्षों के आस्पद, गोत्र, शाखाओं का पता लगाने के लिए अनेक देशों में भ्रमण करने के लिए भेजा। पंडित लालचंद जी ने मारवाड़, ढूंढाड़, शेखावटी, मथुरा, काशी, मालवा, मेवाड़ आदि देशों में भ्रमण किया और पता लगाकर यह निश्चित किया गया कि वर्तमान समय में पारीक्ष ब्राह्मणों के 9 आस्पद, 12 गोत्र और 103 शाखाएं हैं।"
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि पुरोहित देवर्षि जी ने पारीक जाति का जहां महासम्मेलन आयोजित किया वहीं हमारी जनसंख्या की गणना भी कराई तथा हमारे आस्पद, गोत्र एवं शाखाओं की भी गणना कराई। सम्वत 1531 वि. में आयोजित सम्मेलन में क्या निर्णय लिए गए यह विषय अभी अन्वेषणा का है। उक्त दोनों संदर्भों से एक विचारणीय प्रश्न यह भी आता है कि श्री नारायण जी कठवड़ व्यास ने पाटन जिले का उल्लेख देवऋषि जी के संबंध में किया है वहीं, परांकुश मुनि व्यास जी ने जमवारामगढ़ में 'भारी जाति सम्मेलन' आयोजित करने का उल्लेख किया है। प्रश्न यह है कि पाटन जिले में महापुरुष ने जमवारामढ़ में जाति सम्मेलन क्यों किया? इसका सहज एक ही कारण हो सकता है कि आमेर राज्य में पारीकों की संख्या अधिक थी देवऋषि जी के पूर्वज आमेर में रहते थे। अत: जमवारामढ़ में जाति सम्मेलन आयोजित किया गया हो।