पाण्डिया वंश उसके गोत्र, प्रवर, कुलदेवी
ब्राह्मजी ने मानसी सृंष्टि की रचना की, जिससे देवता, महर्षि आदी की उत्पति मेरूपर्वत पर मानी गई है। महर्षिगण वहां से प्रस्थान कर देविका नामक स्थान पर आए वहीं पर ब्राह्मण कुल की उत्पति मानी गई है। वहां से पाण्डिया गौड़ देश, अयोध्या, काशीपुरी, काहलीग्राम, सहारन, पल्लु(कलूरकोट) भांडग, गोरखाणा (डुमासर) उडसर एवं पूलासर के अलावा अन्य गावों व सारण पट्टी में आकर रहने लगे। पाण्डिया परिवार की उत्पति स्थान इस प्रकार है। पाण्डिया काहली ग्राम के निवासी से काहल कहलाये जो चित्रकूट के पास उपमन्यु आश्रम से हैं। इनका गौत्र उपमन्यु वेद-सामवेद, उपवेद-धनुर्वेद, सूत्र-कात्यायनी, शाखा-नारायणी, शिखा-वाम, प्रवर-इन्द्र, वशिरठ भरदवसू, पाद-वाम, देवता-वायू, कुलमाता-चामुण्डा, (ब्राह्मणी) शाखापति-मंगल हैं। पारीकों में जो ब्राह्मण कर्मकाण्ड परायण होकर वैदिक धर्म-कर्म का प्रचार करते थे उसी के कारण उनका नाम पाण्डेय (पाण्डिया) कहा गया। पाण्डिया परिवार की माता,(ब्राह्मणी) चामुण्डा हैं, जो पल्लु पुरानानाम (कलूरकोट) जि. हनुमानगढ़ (सरदारशहर से 80 कि.मी. दूर) में हैं। पल्लु हजारों वर्षो का प्रचीन गांव हैं। पल्लु से महिषाषुर मर्दिनी की अष्टभुजा की मूर्ति ढाईहजार वर्ष पुरानी प्राप्त हुई है, जो बीकानेर संग्रहालय में रखी हुई हैं। चामुण्डा माता का यहां प्राचीन मन्दिर हैं जिसे समय समय पर भक्तों ने नया रूप दिया हैं। पल्लु से पाण्डिया परिवार ईस्वीत सन् 1300 के लगभग भाइंग में, जो सारण पटटी् की राजधानी थी आये। ईस्वी 1400 में इसी सारण पटटी् के अन्तर्गत 300 गांव आते थे जिनका राजा पूला सारण व उसके वंशज थे। इनका क्षेत्रफल पुर्व से पश्चिम 130 कि.मी. तथा उत्तर से दक्षिण लगभग 80 कि.मी.था । जोधपुर-बीकानेर बसने से पहले इस इलाके में गिरासिया राजा था। गिरासिया राज के अन्तर्गत यह ईलाका सारण पट्टी के अधीन था जिसका राजा माल सारण था ईस्वी 1444 में पूला सारण के नामकरण संस्कार में उसके दादा माल सारण ने जो सारण पट्टी का राजा था, पूलासार गांव की तमाम जमीन अपने दादा पंडित (गंगाराम-रेड़ाराम) को दान में दी थी। पूला सारण के नाम से पूलासर गांव की स्थापना वि. सं. 1444 अक्षय तृतीया को दान करके उडसर गांव से पाण्डियों को लाकर बसाया। पूलासर गांव के नाम से कुल 4625 बीघा भूमि का दान किया गया था। पूलासर गांव बसने के बाद पाण्डिया परिवार उइसर से नागौर जिले के गेनाणा, सिकराली, भरनावा, डाबड़ा आदि गांवो में बसने चले गये। उड़सर से ही पूलासर के आलावा पूनसीसर, बूचावास, गोररबाणा, दूलरासर, अड़सीसर जो पाण्डिया बाहुल्य गांव है, में पाण्डिया आकर रहने लगे। पल्लूज में जशोधर जी रहते थे, उनके भदेश्रोजी हुए भदेशरजी के देहड़देतजी तथा राउरामजी दो लड़के हुए। देहड़देतजी के हरदतजी हुए, हरदतजी के दत्तक पुत्र भोजराजजी हुए, भोजराजजी के रेड़ाराम तथा गंगाराम दो पुत्र हुए। हरदत्तजी राउरामजी के बेटे थे। राउरामजी के सात बेटे हुए दुर्गारामजी, नालारामजी, हरदत्तजी, चान्दामरामजी, रेवन्तोरामजी, ठाकरसीजी तथा नेतारामजी। भोजराजजी के बेटे रेड़ाराम, गंगाराम को पूलासर की जमीन दान स्वतरूप देने से उनके परिवार के लोग पूलासर में बसे और पूलासर पाण्डियों वाला कहलाया। जहां आज पाण्डियों के 350 घर हैं। बाकी सारण पट्टी तथा अन्यड जगह राउरामजी के वंशज बसते गये।