योगी गणेशनाथजी महाराज का जन्म नागौर जिलान्तर्गत ग्राम झाड़ीसरा में दिनांक 09.10.1934 को ब्रह्मण परिवार में हुआ था। आप पारीक कठोतिया (दूबे) थे। आपके पिताजी का नाम श्री हरीरामजी तथा माताजी का नाम मथुरादेवी थी। झाड़ीसरा ग्राम नागौर कातर मार्ग पर नागौर से 25 कि.मी. दूर हैं। बसों का नियमित आवागमन नागौर कातर रूट पर हैं। आपने प्रारम्भिक शिक्षा ग्राम झाड़ीसरा के राजकीय प्राथमिक विद्यालय में ग्रहण की तथा संस्कृत विद्यालय मेंड़ता सिटी व नागौर (बीकानेर) में उच्च शिक्षा प्राप्त कि। आप हिन्दी के अच्छे विद्वान थे, कुछ समय ग्राम मांझवास में आपने निजि शिक्षण संस्था के माधयम से विद्यार्थियों को शिक्षा अध्यापन का कार्य किया। उसके बाद में शिक्षा विभाग में शिक्षक पद ग्रहण कर कुछ समय गुडा भगवानदास में अध्यापन कार्य करते रहे, उसी दौरान आपकी माताजी का देहान्त हो गया।
आपने राजकीय सेवा में रहते हुए छुट्टी का प्रार्थना पत्र दिया लेकिन अवकाश नहीं मिलने पर राज्य से त्यागपत्र देकर घर आ गये व कुछ दिनों बाद ही गृहस्थी त्याग कर जोगी बन गये। आप इतिहास ग्राम के पास ही स्थित मांझवास गांव में तालाब के आगोर में नया बास के पास एक केर की झाड़ी के निकट बैठकर तपस्या में लीन हो गये। आपने कुछ अर्से तक निराहार रहकर गायत्री पुरश्चरण व तपस्या की, इसके पश्चात् गुरू की खोज में आपने भारत भ्रमण किया। भ्रमण के दौरान ही नवलेश्वर मठ बीकानेर में श्री 1008 योगी विवेकनाथजी महाराज योगेश्वर से गुरू दीक्षा ग्रहण की। वहां से ग्राम मांझवास में आकर आप उसी जगह एक छोटी सी गुफा बनाकर हठयोग व अन्य यौगिक क्रियाओं की कठिन तपस्या में लीन हो गये। योगी गणेशनाथजी महाराज ने एक युग तक धूणां मांझवास में कठिन तपस्या की, व गुरू गोरखनाथजी से साक्षात्कार किया। आपने 5 वर्ष तक भारत तथा नेपाल में योग प्रचार तथा तीर्थ दर्शन किये। विक्रम स. 2023 ईस्वी सन् 1967 को गुरू गोरखनाथजी की मूर्ति ग्राम मांझवास घूनें पर स्थापित की गई। दिनांक 7 जुलाई 1982 भाद्र पद मास में बुधवार के दिन सुबह 7 बजे श्री नरहरिनाथजी राजगुरू पशुपति नाथ मंदिर नेपाल के कर कमलों द्वारा, श्री पशुपति नाथ मन्दिर की नींव रखी। श्री पशुपतिनाथ भगवान का मन्दिर विश्व में प्रथम नेपाल स्थित है तथा दूसरा ग्राम मांझवास जिला नागौर राजस्थान में हैं।
श्री पशुपतिनाथ भगवान के ग्राम मांझवास के इस मन्दिर में विधि विधान से साठे इकतालीस मन की अष्ट धातु की पशुपतिनाथ की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा 121 कुंडी अतिरूद्र महायज्ञ करके मूर्ति को पूरे भारत वर्ष में सभी द्वादश ज्योर्तिलिंगोकी यात्रा करवाकर जल कलश लाकर की गई हैं। दिनांक 30.01.1998 से 09.02;.1998 तक मन्दिर के सामने मैदान में विशाल शमियाना लगाकर 121 कुंडी अतिरूद्र महायज्ञ किया गया। गणेशनाथजी महाराज के आव्हान पर मारवाड़ की प्रसिद्ध संत भक्त मति फूलाबाई जी के दर्शनों द्वारा चमत्कारिक घटना से खुदाई करने पर साढ़े छ: फीट नीचे से त्रिवेणी संगम जलधारा प्रकट हुई व द्वादश ज्योतिर्लिंगों के उपरान्त तेरहवां कलश भरकर भगवान पशुपतिनाथ का अभिषेक किया गया, तभी प्राण प्रतिष्ठा की गई। मन्दिर परिसर में ही स्थित गुफा हैं, वहीं भगवान नन्दी की विशाल मूर्ति हैं। इसी परिसर में योगी गणेशनाथजी महाराज की समधि है। ईस्वी 200 के मई महीने में 19 तारीख को आप ब्रह्मलीन हुए थे, आपके परिवार में दो पुत्र हैं।