परशुराम महादेव मंदिर

पाली से लगभग 110 कि.मी. दूर मेवाड़ के सुप्रसिद्ध स्‍थल कुंभलगढ़ से मात्र 10 कि.मी. दूर स्थित परशुराम महादेव मन्दिर समुद्र तल से 3600 फुट उंचाई पर बना हुवा हैं। यह मंदिर रामायण कालीन विष्‍णु अवतार भगवान परशुराम द्वारा बनाया गया बताया जाता हैं। दंभ और पांखड से धरती को त्रस्‍त करने वाले क्षत्रियों का संहार करने के लिये भगवान परशुराम ने इसी पहाड़ी पर स्थित स्‍वयंभू शिवलिंग के समक्ष बैठकर तपस्‍या करके शक्ति प्राप्‍त की थी, भगवान शिव का यह मन्दिर दूर दूर तक प्रसिद्ध हैं। परशुराम ने अपने परशे से पहाड़ी को काटकर एक गुफा का निर्माण किया जिसमें स्‍वयंभू शिव विराजमान है, जो अब परशुराम महादेव के नास से जाने जाते हैं। इस मंदिर तक जाने के लिये सादड़ी होकर जाना सुगम रहता हैं, जो फालना रेलवे स्‍टेशन से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है। सादड़ी से कुछ दूर चलने पर परशुराम महादेव की बगीची आती है,कहा जाता है कि यहां पर भी भगवान परशुराम नें शिवजी की आराधना  की थी। परशे द्वारा काटकर बनायी गयी गुफा में स्थित मन्दिर में अनेकों मूर्तियां, शंकर, पार्वती और स्‍वामी कार्तिकेय की बनी हुई हैं। इसी गुफा में एक शिला पर एक राक्षस की आकृति बनी हुई हैं, जिसे परशुराम ने अपने फरशे से मारा था। परशुराम महादेव से लगभग 100 कि.मी. दूर महर्षि जमदग्नि की तपो भूमि है, जहां परशुराम का अवतार हुवा। कुछ ही मील दूर मातृकुन्डिया नामक स्‍थान है जहां परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा से माता रेणुका का वध किया था, प्रतिवर्ष श्रावण शुक्‍ला षष्‍ठी एवं सप्‍तमी को यहां विशाल मेला लगता हैं। पाली नगर से लगभग 35 कि.मी. दूर दक्षिण पश्चिम दिशा मे शाली की पहाडि़यों में स्थित गुफा मन्दिर में जमदग्नि ऋषि ने तपस्‍या की थी। जल प्रपात के समीप गुफा मे विराजे स्‍वंयभू शिवलिंग की प्रथम प्राण प्रतिष्‍ठा परशुराम के पिता जमदग्नि ने ही की थी, शिवलिंग पर एक छिद्र बना हुवा हैं जिसके बारे मे मान्‍यता है कि इसमें दूध का अभिषेक करने से दूध्‍ा छिद्र में नहीं जाता जबकि पानी के सैकड़ों घड़े डालने पर भी वह नहीं भरता और पानी शिवलिंग में समा जाता हैं।
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