शक्ति मुनि

ब्रह्मर्षि वशिष्‍ठ का विवाह कर्दम ऋषि की पुत्री अरुन्‍धति से हुआ था। उनके शक्ति, आदि सौ पुत्र हुए। महामुनि शक्ति बाल्‍यकाल से ही तीक्ष्‍ण बुद्धि के धनी थे। अपने गुरु एवं अन्‍य बुजुर्गों की आज्ञा पालन मानों उनके जीवन जीवन का दर्शन था। अपनी बात जहां तर्क संगत रूप में कहकर वे दूसरे को प्रभावित करने की क्षमता रखते थे वहीं मधुर वक्‍ता भी थे, जिससे अनायास ही लोग उनकी ओर आकर्षित हो जाते थे। शक्ति मुनि ने अपने पिता श्री से ही उनके आश्रम में रहकर वेदाध्‍ययन किया। उनकी विलक्षण प्रतिभा, तपस्‍या एवं स्‍वाध्‍याय के कारण सभी उनका समुचित आदर करते थे। अपने स्‍वभाव के कारण वे सर्वप्रिय थे।

आपका विवाह उतथ्‍य मुनि की पुत्री अदृश्‍यन्ति के साथ हुआ। एक बार एक रास्‍ते से शक्ति मुनि एवं राजा सुदास आमने सामने हो गए। रास्‍ता संकीर्ण था। उस रास्‍ते से एक समय में केवल एक ही व्‍यक्ति आ-जा सकता था। शक्ति मुनि ब्राह्मण होने के कारण जहां पहले जाना चाहते थे वहीं राजा सुदास राजा होने एवं थका होने के कारण पहले जाना चाहते थे। होनी अटल थी। राजा सुदास ने अपने राजा होने के गर्व में जहां शक्ति मुनि पर कोड़ों की मार की वहीं शक्ति मुनि ने राजा द्वारा राक्षस सा व्‍यवहार करने के कारण उसे राक्षस होने का शाप दे दिया कि तुम मनुष्‍यों का भक्षण करोगे। शक्ति मुनि के पिता वशिष्‍ठ जी से राजर्षि विश्‍वामित्र वैर रखते ही थे। अपने योगबल से विश्‍वामित्र ने शक्ति मुनि एवं राजा सुदास का वृत्तांत जान लिया। उपयुक्‍त समय जानकर विश्‍वामित्र ने अपने सेवित किंकर राक्षस को राजा सुदास के शरीर में प्रवेश करा दिया एवं वशिष्‍ठ जी के सौ पुत्रों को मारने का आदेश दिया। किंकर राक्षस के राजा में प्रवेश करते ही वह राक्षस हो गया, और शक्ति मुनि के शाप की यह कहते हुए पालना की कि सर्वप्रथम मैं आपका भक्षण ही करता हूं। राक्षस कल्‍मष्‍पाद (राजा सुदास का नाम राक्षस योनी में कल्‍मष्‍पाद रहा।) ने शक्ति मुनि एवं उनके अन्‍य सभी भाइयों का भी भक्षण कर लिया।

अपने पुत्र शक्ति व अन्‍य पुत्रों की मृत्‍यू का समाचार सुनकर वशिष्‍ठ जी हतप्रभ रह गये। पर विचलित नहीं हुए निर्विकार बने रहे। अपना वंश न चलने का उन्‍हें भारी दु:ख था। वे शरीर त्‍यागने को तत्‍पर हो गये। ऐसे समय में जब उनकी पत्‍नी अरुन्‍धती ने यह बताया कि आपकी पुत्र-वधु, शक्ति की पत्‍नी अदृश्‍यन्ति  गर्भवती है तो उनकी प्रसन्‍नता का पारावार नहीं रहा। वंश नष्‍ट होने का भय नहीं रहा। 

नियत समय पर बालक के नहीं होने पर ब्रह्मर्षि वशिष्‍ठ को चिंता सताने लगी। ऐसे समय में स्‍वयं भगवान विष्‍णु ने प्रकट होकर ब्रह्मर्षि वशिष्‍ठ से कहा, आपका पौत्र अद्वितीय होगा। पुराणों और संहिताओं का वि निर्माण एवं सृजन करेगा। गर्भावस्‍था में ही उदरस्‍थ बालक वेद की ऋचायें, अपने पिता शक्ति की भांति बोलने लगा था। बालक शक्ति के पुत्र पैदा होने पर स्‍वयं वशिष्‍ठ जी ने बालक के जातकर्म, नामकरण करवाये। यही बालक आगे चलकर पराशर नाम से विख्‍यात हुआ।

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