पारीकों की शाखाओं का अर्थ भेद

जाति की शाखाओं का अर्थ भेद क्‍या है, यह विषय शोध के दृष्टिकोण से अभी तक अनुत्तरित ही रहा है। मेरी सम्‍मति में जातियां दो प्रकार से बनी- व्‍यक्ति की विद्यापीठ से, जिसके अनुसार जिस मूल गुरू के यहां व्‍यक्ति विशेष ने शिक्षा ग्रहण की वही उसका गौत्र बन गया एवं द्वितीय रक्षापीठ से, जो व्‍यक्ति रक्षा करते थे, उसके अनुरूप गौत्र बन गए। 

इसी प्रकार गौत्रों का प्रचलन भी मेरी सम्‍मति में व्‍यवसाय से, सम्‍मान से एवं स्‍थान विशेष से हुआ है। इस सम्‍बन्‍ध में पारीक संहिता एवं पारीक प्राबोध में हमारी जाति की 103 शाखाओं का जो अर्थ भेद या इन शाखाओं का प्रादुर्भाव दिया गया है वह दृष्‍टव्‍य है- 

पारीकों की 103 शाखाओं का अर्थभेद

1. अगरोटा ग्राम में निवास करने से अगरोटा नाम वाले हो गये। 

2. बाबर ग्राम में रहने से बाबर नाम वाले हो गये। 

3. बुराट ग्राम में रहने से बुराट नाम वाले हो गये। 

4. वई ग्राम में रहने से बय्या नाम वाले हो गये। 

5. कीबसाणी ग्राम में रहने से किवसान्य नाम वाले हो गये। 

6. ओडीटा ग्राम में रहने से ओ‍डीटा नाम वाले हो गये। 

7. पाई नगर में रहने से पाईवाल नाम वाले हो गये। 

8. जो अग्नि-होत्र करते थे उनका नाम अग्‍न्‍योत्‍या हो गया। 

9. देवपुरा ग्राम में रहने से देवपुरा नाम के हो गये। 

10. धूंधाट ग्राम में रहने से धूंधाट नाम के हो गये। 

11. पुरपाट ग्राम में रहने से पुरपाट नाम के हो गये। 

12. दुरघाट ग्राम में रहने से दुरघाट नाम के हो गये। 

13. हुण्‍डीली ग्राम में रहने से हुण्‍डीला नाम के हो गये। 

14. ब्राह्मणों में भट्ट का काम करने वाले तथा कौशिकी नदी के किनारे रहने से कौशिक भट्ट कहलाये। 

15. मेड़ता ग्राम में रहने से मेड़तवाल नाम के हो गये। 

16. रहटा ग्राम में रहने से रहटा नाम वाले हो गये। 

17. पापड़ी ग्राम में रहने से पापड़ नाम वाले हो गये। 

18. अष्‍टांग योग का अभ्‍यास करने वाले संयोगी कहलाये। 

19. जो धर्म प्रचार के लिये संसार में भ्रमण करते थे भ्रमाणा कहलाये। 

20. कसूवी ग्राम में रहने वाले कसूवीवाल कहलाये। 

21. हलहरा ग्राम में रहने वाले हलहरमा या हलहस्‍या नाम वाले हो गये। 

22. मलवड़ ग्राम में रहने वाले मलवड़ कहलाये। 

23. पंचोली ग्राम में रहने वाले पंचोली नाम वाले हो गये। 

24. जेरठा ग्राम में रहने वाले जेनाम वाले हो गये।

25. जो बलवान होकर मल्‍लों का काम करते थे उनका नाम सुचंगा हुआ।

26. भार्गव मुनि के शिष्‍य भारगो कहलाये। 

27. रत्‍नपुरा में रहने वाले रत्‍नपुरा वाले हो गये। 

28 सतमुण्‍डा नाम के ग्राम में रहने से शतमुण्‍डा कहलाये। 

29. जो कठौती ग्राम में रहते थे वे कठौत्‍या नाम के हो गये। 

30. कर्मकाण्‍ड के प्रचार द्वारा यज्ञों से इन्‍द्रादिदेवों को जो तृप्‍त करते थे, 

    उनका नाम भट्ट हुआ। ये कौशिकी नदी के तट पर बसे थे इसलिये कौशिक भट्ट कहलाये। 

31. कुसटा ग्राम में रहने से कुसटा नाम वाले हो गये। 

32. जावली ग्राम में रहने से जावला नाम के हो गये। 

33. व्‍यापार करने वाले लोग बिणजारा कहे गये। 

34. दुलाची ग्राम के रहने वाले दुलीच्‍या कहलाये। 

35. दुही ग्राम में रहने से दुहीवाल हो गये। 

36. सोती ग्राम में रहने से रोजड़ा नाम के हो गये। 

37. रोजड़ा ग्राम में रहने से रोजड़ा नाम के हो गये। 

38. भरड़ोदा ग्राम में रहने से भरड़ौदा नाम वाले हो गये। 

39. जाडोदा ग्राम में रहने वाले जाडोदा नाम वाले हो गये। 

40. गोगड़ा ग्राम में रहने से गोगड़ा नाम वाले हो गये। 

41. चतुरता से जो कार्य करते थे उनका नाम (दक्ष)दाख हो गया। 

42. शाण्डिल्‍य मुनि के शिष्‍य साड़ल नाम के हो गये। 

43. कीलणवा ग्राम में रहने से कीलणवा हो गये। 

44. गोलवां ग्राम के निवासी गोलवाल हो गये। 

45. जो ब्राह्मण, ब्राह्मणों की सेवा करते थे उनका नाम बामण्‍या हुआ। 

46. जो ब्राह्मण ओजस्‍वी अर्थात बलवान थे उनका नाम ओजाया हो गया। 

47. वेदादि शास्‍त्रों को जो पढ़ते थे उनका नाम पाठक हो गया। 

48. ओहारी ग्राम में निवास करने से ओहोरा नाम के हो गये। 

49. मूढकी कठोती नाम के ग्राम में रहने से मूढक्‍या, कटोत्‍या नाम हो गया।

50. यजुर्वेद की कठनाम की शाखा के पढ़ने पढ़ाने से कठपठ (कठवड) नाम पड़ा। 

51. कोथली ग्राम में रहने से कौथिल्‍या नाम के हो गये। 

52. पोमग्राम में रहने से पौम नाम के हो गये। 

53. काहली ग्राम में रहने से काहला कहलाये। 

54. जिन्‍होंने नमक खाना छोड़ दिया था उनका नाम अलूणा हो गया। 

55. डसाणी ग्राम में रहने से डसाण्‍या हो गये। 

56. पुलषाणी ग्राम में रहने से पुलषाण्‍या हो गये। 

57. जहेली ग्राम में रहने से जहेला कहलाये। 

58. बाकली ग्राम में रहने से बाकला कहलाये। 

59. विणसटा ग्राम में रहने से विणसटा नाम वाले हो गये। 

60. लाडणा ग्राम में रहने से लाणवा नात वाले हो गये।

61. मलवण्‍डपुरा ग्राम में रहने वाले मलवण्‍डा कहलाये। 

62. वीणासरा ग्राम में बसने से वीणसरा नाम के हो गये। 

63. कपडोदा ग्राम में बसने से कपडोदा नाम के हो गये। 

64. डाबडी नगर में बसने से डाबड़ा के हो गये। 

65. जो वैष्‍णव दीक्षा लेकर वैष्‍णव होते थे वो दीक्षित कहलाये। 

66. पदमणी ग्राम में रहने से पदमाणा नाम के हो गये। 

67. दुजारी ग्राम में रहने से दुजारा नाम के हो गये। 

68. गलवा ग्राम में रहने से गलवा नाम के हो गये। 

69. रजलणी ग्राम में रहने से रजलाणा नाम के हो गये। 

70. लाछण नगर में रहने से लाछणवा नाम के हो गये। 

71. आलसरा ग्राम में रहने से अलसरा नाम के हो गये। 

72. जो भोजनों में मिष्‍टान्‍न अधिक खाते थे उन्‍हें लापस्‍या कहने लगे। 

73. बुलबुला ग्राम में रहने से बुलबुला कहलाये। 

74. वुडाणी ग्राम के रहने से वुडाणा कहलाये। 

75. ग्रामों में जो प्रधान होते थे वो ठुकरा कहलाये। 

76. अजमेर नाम के ग्राम में रहने वाले अजमेरा कहलाये। 

77. सकराने ग्राम में बसने से सकराणा कहलाये। 

78. जो वनों में रहते थे उनका नाम जांगला हो गया। 

79. गड़हड़ी नाम के ग्राम में रहने से गड़हड़ा हो गये। 

80. धार्मिक कार्यों में जिनका वरण किया जाता था अर्थात 

    धार्मिक कृत्‍यों में जो ब्राह्मण स्‍वीकार किये जाते हैं, उनको वरणा कहने लगे।

81. कुलहती ग्राम में रहने से कुलहता कहलाये। 

82. भुरभुरा ग्राम में रहने से भुरभुरा नाम वाले हो गये। 

83. जो अपनी पंडिताई को संसार में प्रकट करते थे वे पण्डिता कहलाये। 

84. पुन: पाल नामक नगर में रहने से पुन: पाल कहलाये। 

85. बागुण्‍डी ग्राम में रहने वाले बागुण्‍डा कहलाये। 

86. वंभोरी ग्राम के वंभोरया कहलाये। 

87. डिजारी ग्राम में निवास करने वो डिजारया कहलाये। 

88. सोतड़ी ग्राम वासी लोग सोतड़ा कहलाये। 

89. वृक्ष की शाखाओं से जो अपना श्रृंगार करते थे उनको शाखा सिंगार (शोखिया) कहते थे। 

90. कमलों के बाग लगाने वालों का नाम कमला पड़ गया। 

91. सूरेड़ी ग्राम में निवास करने से सूरेड़ा कहलाये। 

92. जो जंगलों (डांग) में रहते थे उनका नाम डांगी हो गया। 

93. कांथडी ग्राम में वास करने से कांथड्या कहलाये।

    किसी-किसी का मत है कि कंथड् ऋषि के शिष्‍य होने से काथड्या कहलाये। 

94. कसोटा ग्राम के वासी केसोट कहलाये। 

95. मलगोत नाम के ग्राम में रहने से मलगोता कहलाये। 

96. नगलाणी ग्राम में बसने से नगलाण्‍या कहलाये। 

97. जो ग्राम वासियों को पूजन पाठ कराते थे वे तावण कहलाये। 

98. मुद्गल ऋषि के वंशजों का मुद्गल नाम हुआ। 

99. जो राजाओं के भण्‍डार की रक्षा करते थे वे भण्‍डारी कहलाये। 

100. गर्ग वंश के गारग कहलाये। 

101. भोटा ग्राम के भोटा नाम वाले हुये। 

102. दहगोत ग्रामवासी दहगोत नाम वाले हो गये। 

103. अच्‍छी मति वाले सुमन्‍त्या नाम वाले हुये।


  

इस प्रकार पारीक्ष ब्राह्मणों के 103 भेद हुए। 

हमारे आस्‍पद, गौत्र, नख, वेद, उपवेद, सूत्र, शिखा, प्रवर, पाद एवं देवता आदि के सम्‍बन्‍ध में विस्‍तृत विवरण, अध्‍याय सात में दिये गये विवरण-पत्र में अंकित है।


*'डांग क्षेत्र' करौली राज्‍य, चम्‍बल नदी व जयपुर राज्‍य के बीच में है। इम्‍पीरियल गजेटियर में इसकी भौगोलिक स्थिति इस प्रकार वर्णित है। पहाडि़यों और उबड़-खाबड़ जमीन के क्षेत्र को डांग कहते है। चम्‍बल नदी के बीहड़ इसमें आते हैं।" 

भारत का भाषा सर्वेक्षण- डॉ. प्रियर्सन भाग 9 पृष्‍ठ 18(इस इलाके की बोली डांगी कहलाती है व यहां से आये पारीक भी डांगी कहलाये)।

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